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थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने चौथे जनरल सुंदरजी मेमोरियल व्‍याख्‍यान को संबोधित किया

भारत के अग्रणी सैन्य विचारकों में से एक जनरल के सुंदरजी की विरासत का उत्सव मनाने के लिए भारतीय सेना द्वारा मानेकशॉ सेंटर में चौथा जनरल सुंदरजी स्मृति व्याख्यान आयोजित किया गया। यह व्याख्यान मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री सेंटर एंड स्कूल (एमआईसी एंड एस) और सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्ल्यूएस) के तत्वावधान में आयोजित किया गया।

इस कार्यक्रम में तीनों सेनाओं के सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों के साथ-साथ साहित्यकारों और विभिन्न विशेषज्ञों ने भाग लिया। व्याख्यान में उत्साही और दूरदर्शी 13वें सेनाध्यक्ष, जनरल के सुंदरजी को याद किया गया, जिन्हें प्यार से ‘मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट का जनक’ भी कहा जाता है।

थल सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल मनोज पांडे ने कार्यक्रम में मुख्य वक्तव्य दिया और जनरल सुंदरजी की दूरदर्शिता को याद किया। उन्होंने युद्धक्षेत्र के डिजिटलीकरण, सूचना संबंधी युद्धकला, प्रौद्योगिकी प्रसार, पारंपरिक रणनीतियों और बल संरचना के क्षेत्र में जनरल सुंदरजी के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला, जो उनके ‘विज़न 2100’ में परिलक्षित होता है।

सीओएएस ने परिवर्तन पर जनरल सुंदरजी के विचारों को रेखांकित करते हुए कहा कि, “भारतीय सेना परिवर्तन की अनिवार्यता के प्रति सजग है, और यह एक प्रगतिशील दृष्टिकोण के साथ है, हमारा इरादा न केवल बदलाव का है, बल्कि तीव्रता से बदलाव का भी है। भारतीय सेना का समग्र परिवर्तन, जिसे हमने दो साल पहले शुरू किया था, एक आधुनिक, चुस्त, अनुकूली, प्रौद्योगिकी से लैस, आत्मनिर्भर और भविष्य के लिए तैयार, बल को आकार देने के हमारे प्रयासों का हिस्सा है।”

प्रख्यात वक्ताओं में जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने जनरल सुंदरजी के साथ अपने अनुभव साझा किए और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता’ पर भी अपने विचार व्यक्त किए, जबकि लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा (सेवानिवृत्त), पूर्व उप सेना प्रमुख और सदस्य राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (एनएसएबी) ने “भारत के सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण: जनरल के सुंदरजी से सबक” विषय पर व्याख्यान दिया। इस जानकारीपूर्ण सत्र के बाद एक प्रश्नोत्तर सत्र भी हुआ।

एक कुशल सैनिक और दूरदर्शी जनरल सुंदरजी को भविष्य की युद्धकला और सुरक्षा प्रतिमानों में उनकी गहरी अंतर्दृष्टि और रणनीतिक दूरदर्शिता के लिए जाना जाता है। उनका योगदान ‘ऑलिव ग्रीन्स’ में उनकी विशिष्ट सेवा से कहीं ज्यादा है। यह व्याख्यान, पूर्व सेनाध्यक्ष को याद करने का एक उपयुक्त अवसर था।

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